"पापा" ये नाम सुनते ही लोगो के मन में एक जेसा विचार कोंधने लगता हैं,अधिकतर के दिलो-दिमाग में पापा की एक ही छवि हैं-एक सख्त कडक मिजाज
पर वास्तव उस सख्त छवि का भी अपना एक कारण हैं।
जिन्दगी जीने का एक नज़रिया पापा से ही सिखा मैंने
मैं हमेशा ऐसे कडक स्वाभाव के खिलाफ था,पर एक घटना ने मेरा नज़रिया ही बदल दिया।
दरअसल दुनिया से रूबरू कराना मुझे पहली दफा पापा के सख्त मिजाज ने ही सिखाया।
हुआ यूँ की मैं यात्रा पर जाने वाला था,तो पापा ने हिदायत दी कि किसी से चलते चलते दोस्ती मत करना,दुसरो का दिया मत खाना वगेरह वगेरह
मैं कहना चाहता था कि पापा अब मैं बड़ा हो गया हूँ इतनी सख्ती अच्छी नही,पर कुछ बोल नही पाया
रेल में एक यात्री से मुलाक़ात हो गयी,सोचा बात करली जाये ताकि सफर आसान हो जाएगा,पर इस बीच पापा की सख्ती से दी हुई हिदायत याद आ गयी।
जी तो कर रहा था की बात ही तो करना हें इससे क्या हो जाएगा
पर फिर मैं पापा का आज्ञाकारी बेटा बन गया और उस व्यक्ति से बात नही की,
अगले स्टेशन पर पता चला कि वो व्यक्ति पॉकेटमार था,और बात करते करते उसने 3 लोगो की जेब साफ़ करदी थी। पापा की सख्तियत आखिर काम आया।
बडो का सख्त्पन भी काम का होता हें दोस्तों।
आपका अपना सन्तोष यादव
ज़िन्दगी एक किताब की तरह हैं,कुछ पन्नों को आपके सामने लाने की कोशिश हैं बस .............
बुधवार, 3 फ़रवरी 2016
पापा
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