मंगलवार, 2 फ़रवरी 2016

ज़िन्दगी को जीकर तो देखिये

बच्चो सा फुदकना हैं ज़िन्दगी;खिलती हुई कलियाँ हैं ज़िन्दगी;दुःख की घड़ी में साथ देना हैं ज़िन्दगी;हारकर भी हार न मानना हैं ज़िन्दगी।
यह बातें में इसलिए कह पा रहा हूँ क्यूंकि आज से लगभग 3 महीने पहले शायद में जीना भूल चूका था,पर उन्ही दिनों जब मेने एक बच्चे को बेवजह हँसते देखा तो मुझे भी हँसी आ गयी ,फिर मैनें सोचा की मैं हँसा क्यों? पर उस वक्त हसना अच्छा लग रहा था,तब समझ में आया की बेवजह हँसना भी ज़िन्दगी हैं,चाहे फिर लोग हमे बेवकूफ ही क्यों न समझे,आखिरबेवजह हँसना भी हैं जिंदगी
अरे हंसने के लिए भी वजह ढूँढनी पड़े तो मुझे नही लगता की आप जी रहे है या जीवन को काट रहे है।

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