शनिवार, 28 मई 2016

गम में डूबकर जीना,क्या वाकई में जीना हैं ?

राघव का रिज़ल्ट आये अभी 2 ही दिन हुए थे,लेकिन राघव का हाल तो इतना बुरा हो चुका था कि न खुद ठीक से जी पा रहा था और न ही उसके घरवाले;क्युंकि राघव का रिज़ल्ट किसी की भी उम्मीद के मुताबिक नही था,ऐसा ही तो होता हैं जब उम्मिदे धूमिल होती हैं;सपनो के जो पंख लगे थे जो मानो किसी ने कतर दिए हो और जैसे बिना पंख के आसमान से गिर रहा हो।
वो और उसके साथ साथ उसका पुरा परिवार भी उसके दुख मे दुखी हो चले। राघव को देखकर कोई भी आसानी से कह सकता था कि क्या इस लडके क जीने से मन भर गया है,जो इतना उदास रहता हैं।राघव को अपनी तकलिफ कम करने का कोई उपाय नज़र नहीं आया।
                   1 साल पहले की ही बात है जब राघव क रिज़ल्ट नहीं आया था।
मेरा दोस्त राघव और मै जब भी मिलते हमेशा की तरह गप्पे लडाते  रहते थे;राघव हमेशा सज धजकर ही रहता,काले घुंघराले बाल,ऊंचा कद,पेंट मे बेल्ट और आंखो पर काला चश्मा । राघव के चेहरे की मुस्कान देखकर अच्छे अच्छे दुखी आत्मा अपना गम भुला बेठते । पर आज हालात कुछ और ही थे;जो लोग राघव को देखकर मुस्कुरा उठते थे वही सब लोग आज राघव को देखकर दुखी हो उठते ।अब राघव के चेहरे की मुस्कान कही खो गयी थी।राघव कभी खुद को सजने संवारने मे वक्त लेता था आज वो वक्त उसने अपनी उदासी को दे दिया है;बाल बेतरतीब बिखरे और उलझे हुए है,जो आंखे कभी काले चश्मे से ढंकी रहती थी आज उन आंखो मे आंसुओ के सिवाय कुछ और नज़र नही आता और उंचा कद तो था पर वो आज किसी बुढे से कम नज़र नहीं आ रहा था।   
फिर कही उसने सुना कि अगर टूट कर बिखरना ही हैं तो क्यु ना कुछ ऐसे बिखरे कि सामने वाला भी अपने ही रंग मे रंगा नज़र आए जैसे रंग बिखरते है,जैसे हवा बहती है,जैसे खुशबू बिखरती है और बिखकर दुसरो को खुशिया दे जाती हैआखिर राघव के दुखो के पंख झड गये और खुशियो के नये पंख लग गये।
उसने गम को पिछे छोड फिर से कोशिश की और इस बार उसका रिज़ल्ट वाकई चौकाने वाला था;वो प्रथम श्रेणी से पास था।
क्या टूटकर बिखरना;हमारी मुश्किलो को आसान बना देता हैं या फिर हमारी तकलिफो को और बढा देता हैं ? ज़रा पल भर के लिये ही सोंच कर देखा जाये कि आखिर हमे हमारी तकलिफो में टूटकर बिखरना कितना सही हैं।
जब जब हमपे मुसीबते आती है, तो वो साथ में अनेक अवसर भी लेकर आती हैं, और हाँ दुखो से घबराकर टूटने से हम अपने साथ साथ अपने परिवार को भी न चाहते हुए अपने दुख मे शामिल कर लेते हैं।
याद हैं जब एक पेंसिल कि नोक जब टूटती हैं तो कैसे बिखर जाती हैं,बिल्कुल ऐसे ही हमारे गम,दुख,तकलिफ हैं;जिसमे जितना हम टूट कर बिखरते हैं उतना ही हमारे साथ हमारे अपने भी टूट जाते हैं।
तो जब भी टूटो तो ऐसे कि खुशियो के रंग हर तरफ फैले न कि गम के।
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