मंगलवार, 12 अप्रैल 2016

ज़िन्दगी का नजरिया।

हताशा,निराशा,प्रशंसा और गहन आस्था ये सब कुछ हमारे नज़रिए से तय होता हैं।
             जहाँ हमारे लिए रात एक गहरा अन्धकार लिए होती हैं;वहीं उल्लु के लिए तो वो सवेरा होता हैं।
मतलब साफ़ हैं कि परिस्थिति के अनुरूप ही नजरिया बन जाता हैं,और प्रत्येक व्यक्ति की अलग अलग परिस्थितियाँ होती हैं। यही परिस्थितियां समय,स्थान और वहां की अपनी भौगोलीक स्थिती पर निर्भर करता है।
इसिलए कोई भी राय बनाने से पूर्व हमें ये तय कर लेना चाहिए कि आखिर सामने वाले ने किस कारणवश ये निर्णय लिया हैं;फिर हमें उस विषय में सोचना चाहिए।
           "नज़रिया" ही हैं जो बने बनाये रिश्तों को पल भर में खण्ड खण्ड कर सकता हैं और नज़रिया ही हैं जिससे वर्षो पुराने टूटे रिश्तो को नई शुरुआत दी जा सकती हैं।
बस नजरिया सकारात्मक होना जरूरी हैं ।
अगर हम अपने नज़रिए को सकारात्मक दृष्टिकोण देने में कामयाब रहें तो दुनिया आपके कदम चुमने को तैयार रहेगी वर्ना दुनिया आपसे मुँह मोडने में वक्त नहीं लगाएगी।
     सोचना आपको हैं कि आपको दुनिया के साथ आगे बढना हैं या फिर उसी दुनिया की भीड़ में खो जाना हैं।
तय आपको करना हैं।
वक्त और नजरिया आपको सकारात्मकता दें।

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