बुधवार, 3 फ़रवरी 2016

जिंदगी की एक सुबह,दरख्तों की हरियाली के साथ

दरख्त या पेड़ पौधे।
कहते हैं कि जो जैसे परिवेश में रहता हैं,उसका स्वभाव भी वैसा ही हो जाता हैं,पर कितना अजीब हे न की हम प्रकृति के ऐसे संसार में रहते हैं जो केवल हमें देना सिखाती हैं,वो भी निःश्वार्थ फिर भी हम अधिकतर इसे क्यों नही अपना पाते।
कारण कई हैं।
शायद हम कभी दो पल की फुर्सत लेकर इन पेड़ पौधों हरियाली के बिच बेठे ही न हो,और गर बैठे भी हो तो कभी मन ने घर की चिन्ताओ से कभी उबरने ही न दिया हो।
एक बार चिन्ताओ को छोड़ प्रकृति के साथ खुलकर दो पल तो तबियत से गुजारो,अद्भूत सुकूँ मिलता हैं।
        बातें कीजिये पेड़ो से,उनके पत्तो से,पत्तो से पूछिये की केसा लगता हैं जब तुम्हारे साथ वाले पत्ते टूट कर मिट्टी में मिल जाते हैं,और इसका जवाब आपकी आत्मा देगी,वो कहेगी की टूटना,बिखरना फिर उठ खड़े होना यही तो संसार का नियम हैं। फिर शायद हम अपने दर्द को कुछ हद तक तो हल्का कर सकते हैं।
             
          सन्तोष यादव

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

आओ किसी के लिए सांता बने

(कविता) माटी के उस ढेर से ,आओ चीज नवीनता से सने । बाँटकर खुशियाँ दुखियारों में,आओ किसी के लिए सांता बने।। जीवन की राह कठिन हैं,साहस व धैर...