मनोज बाजपेयी की कथित शार्ट फिल्म "तांडव",एक ऐसी रचना हैं जो समाज में अभी घटित हो रहा हैं,यह फिल्म समाज का एक आईना हैं,वास्तव में यह फिल्म खुद को खुद से जोड़ने में काफी मदद करती हैं,जब हमारी ज़िन्दगी को चारो तरफसे दुःख घेर लेता हैं तो कैसे खुद खुश होकर अपने साथ अपनों को भी खुश क्र देता हैं।
तांडव यानि कि कुछ ऐसा करना जो थोडा अजीब लगे और जहाँ पर दुनिया की फ़िक्र चिंता खत्म हो जाती हो
शिव तांडव एक नृत्य हैं जिसमे भोलेनाथ अद्भूत नृत्य से सम्मोहित क्र लेते हैं,दुसरे के पैर भी एकाएक थिरकने लगते हैं,मतलब अपने रंग में दुसरो को रंगना भी तांडव हैं,यहाँ रंगने से मेरा मतलब अच्छाई से हैं।
जिंदगी दुखो की सौगात हैं तो यह नही भूलना होगा कि खुशियों बिसात भी ज़िन्दगी ही हैं।
ज़िन्दगी एक किताब की तरह हैं,कुछ पन्नों को आपके सामने लाने की कोशिश हैं बस .............
सोमवार, 8 फ़रवरी 2016
तांडव
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आओ किसी के लिए सांता बने
(कविता) माटी के उस ढेर से ,आओ चीज नवीनता से सने । बाँटकर खुशियाँ दुखियारों में,आओ किसी के लिए सांता बने।। जीवन की राह कठिन हैं,साहस व धैर...
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(कविता) माटी के उस ढेर से ,आओ चीज नवीनता से सने । बाँटकर खुशियाँ दुखियारों में,आओ किसी के लिए सांता बने।। जीवन की राह कठिन हैं,साहस व धैर...
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