गुरुवार, 4 फ़रवरी 2016

खुशनुमा पल और ज़िन्दगी।

वाकई में आप लोग क्या इंतज़ार करते हैं कि कोई ऐसा खुबसूरत पल आएगा और आपकी जिंदगी में तमाम खुशियाँ बिखेर देगा,सोंच तो सकारात्मक हैं;पर यही सोंच हमारी खुशियों को हम तक आने ही नहीं देती।
                                   दरअसल हमने हमारी सीमओं को कई जंजीरों में जकड़ रखा हैं,ख़ुशी का कोई मौसम नहीं होता,कोई दिन नहीं होता और कोई समय नहीं होता। हाँ,सच में।
कभी मासूमियत से इक पल मुस्कुराइए तो,अब आप सोचेंगे कि क्यों,तो इसका जवाब हैं-बस यूँ ही।
अब बच्चा बनने की कोशिश कीजिये और बेवजह हंसिए। ये बाते जरूर बचकानी लग सकती हैं,पर इन बचकानेपन में जो मजा हो वो असीम हैं।
तो एक बार अपने अंदर के मरे हुए या यूँ कहे कि सोए हुए बच्चे को एक बार फिर जगाये। यकीन मानिए,एसी ख़ुशी होगी कि दुनिया के सारे ऐशो-आराम धरे के धरे रह जाएंगे,तो फिर देर किस बात की;हो जाइये शुरू अभी।
     All the best.
           सन्तोष यादव

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