बुधवार, 19 दिसंबर 2018

आओ किसी के लिए सांता बने

(कविता)

माटी के उस ढेर से ,आओ चीज नवीनता से सने ।
बाँटकर खुशियाँ दुखियारों में,आओ किसी के लिए सांता बने।।

जीवन की राह कठिन हैं,साहस व धैर्य से जीवन में प्रवीणता चुने।
धोकर गम की काली स्याही,आओ किसी के लिए सांता बने।।

प्यार का तोहफा दे सभी को,भय व चिंतामुक्त ख्वाब बुने।
अंधेरे गलियारे में दिया जलाकर,आओ किसी के लिए सांता बने।।

हौसलों को अपने रुकने मत देना,बादल आए चाहे कितने भी घने।
सूखे में तू बारिश करदे, फिर से चलो "सांता बने"।

@IamSantyKool

गुरुवार, 12 जुलाई 2018

पुस्तक समीक्षा:बस,इतनी सी थी ये कहानी.......



कहानियाँ अनुभव होती हैं,कहानियाँ एहसास होती हैं,कहानियाँ एक उम्र होती हैं,कहानियाँ याद होती हैं,कहानियाँ मन की चंचलता होती हैं(काल्पनिकता),कहानियाँ अपनेआप में एक संसार होती हैं या कहे कि सागर होती हैं;जिसमें हम यानी श्रोता,पाठक अथवा दर्शक उस सागर में गोता लगाते हैं।             
किस्सागो निलेशजी व उनकी मण्डली की कहानियाँ जो अक्सर आपने हमने रडियो पर सुनी होगी 'यादों का इडियट बॉक्स with नीलेश मिसरा' 92.7 big fm पर,या youtube पर;यही अब  एक किताब के रूप में भी उपलब्ध हैं।

"बस,इतनी सी थी ये कहानी.....इश्क की कहानियाँ"  :-(2015 प्रथम संस्करण)
ये किताब संग्रह हैं प्रेम,मोहब्बत,इश्क का।संग्रह हैं बिछड़ने का दुखभरे एहसास का,संग्रह हैं उस हसीं मुलाक़ात का,संग्रह हैं पवित्र प्रेम का(इश्क़ की ज़ियारत),संग्रह हैं अधूरे सफ़र की......
यह छोटी सी किताब अपनेआप में एक प्रेम ग्रन्थ से कम नहीं हैं।
इस किताब में निलेश जी व उनकी मण्डली द्वारा रचित वो कहानियाँ हैं जो नीलेश जी 92.7 big fm radio पर सुना चुके हैं ।
जब मैंने इस किताब को नहीं पढ़ा था तब तक मुझे लगा था कि   बिना उस रूहानी आवाज़ के वही जादू यहाँ देखने को मिलेगा जैसा radio पर सुनकर मिलता हैं,क्या वैसा सुकून मिलेगा जिसे सुनकर एक पल दर्द से छूटकारा मिल जाता हो। संदेह था कि नहीं होगा वो जादू......
..
पर मैं गलत था।
मैं कहानी पढ़ते पढ़ते कब कहानी के पात्र की जगह ले लेता मुझे पता ही नहीं चलता,कब बाहर के शोर शराबे,खामोशी अख्तियार कर लेते मालूम ही नहीं पड़ता ।
इसे ही तो कहते हैं 'खो जाना'।यहाँ कहानी में कहानियाँ मिलेंगी। शब्दों में प्यार मिलेगा। शब्दों में दृश्य मिलेंगे,शब्दों में......जी हाँ केवल शब्दों में।
आवाज की जादू का तो सबको पता था पर शब्दों की जादूगरी का अब एहसास हुआ(हालाँकि जादू पहले भी था पर वो एहसास मुझे अब हुआ,पढकर)
कब आप खुद उस कहानी के पात्र बन जाएंगे एहसास नहीं ही होगा,कब उसका दर्द;आपका दर्द बन जाएगा पता ही नहीं चलेगा।कब कहानी की बारिश आपके मन को भिगों देगी जान ही नहीं पाओगे।
यह हैं जादूगरी,जादूगरी लेखन की
जादूगरी अपनेपन की।


    बात करते हैं कुछ कहानियों की जो इस किताब की खासियत हैं और उनके वो कुछ शब्द जो रोमांचित करने पर मजबूर कर दते हैं
इस किताब में अलग अलग लेखको की या निलेश मिसरा जी के मण्डली के सदस्यों द्वारा लिखी कुल 14 कहानियाँ हैं।
तो शुरुआत करते हैं पहली कहानी से
1-'बगल की सीट वाली लडकी':-ये कहानी 'नीलेश जी' द्वारा लिखी गयी हैं। इस कहानी में एक सफर हैं,हिन्दी वाला सफर और अंग्रेजी वाला सफर दोनों। कहानी हैं उन दो लोगो की जिनमे से अपने हमसफर से अलग हैं तो दूसरा अपने अपने हमसफर से अलग होने के रास्ते पर।
प्रकाश जो की एक किरदार हैं अकेलेपन का इतना आदि जो गया हैं कि अकेलेपन की कई कई परिभाषाएँ गढ़ लेता था जैसे की कोई रचनाकार हो। रूपा जो कि बगल की सीट वाली लडकी थी।
दोनों अपने अकेलेपन में एक साथ ढूंढ लेते हैं। अपने हर दुक्ज बाँट लेते हैं।
दोनों अपने सफ़र में आज़ादी को चुन लेते हैं।......

2-तू कूजा मन कूजा(आजम क़ादरी):-कहानी हैं ऐसे वक्त की जिसका कभी वक्त हुआ ही नहीं,पर वक्त के साथ वक्त रहते वक्त आखिर साथ दे ही गया।
ये कहानी हैं दो वक्त की जिसकी कहानी तीसरा वक्त सुनाता हैं(तीसरा वक्त लेखक हैं)
इश्क,मोहब्बत,प्यार ऐसे कितने ही शब्द क्यों न गढ़ लो,ये इश्क लफ्ज़ो में बयाँ करना मुश्किल होता हैं।या फिल्म डॉन के हिसाब से कहे तो 'प्यार को समझना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हैं।'
यह कहानी हिंदी और उर्दू का मिश्रण हैं।
अल्लाह हैं तो श्री कृष्ण का भी बखान मिलता हैं......।

3-पहली मुलाक़ात(कंचन पन्त):-कहानी हैं बचपने की,कहानी हैं भोले से इश्क की,कहानी हैं शरारत की,कहानी हैं प्रेम की।
ऐसे तो इस कहानी के मुख्य किरदार कई दफा मिलते पर बाते नहीं करते,लडकी उस लडके का जो कि उसके घर पर  किराए से हैं उसे मोगली मोगली कहकर मजाक भी उडाती,उसके अपने घर से जाने की इच्छा भी मन ही मन करती ।
फिर भी मुलाक़ात पहली कैसे?
यह सब तो शुरुआत भर थी उस पहली मुलाक़ात की,जब झगडालू और मजाक उड़ाने वाली वह लडकी उस लडके को दिल दे बैठी थी और वह लड़का भी तो उसे अपना दिल दे बैठा था।
बस दोनों ने इकरार नहीं किया था।
तो वो पहली मुलाक़ात थी :-प्यार वाली........।

4:-मिट्टी का खिलौना(नीलेश मिसरा):-यह कहानी उन दो लोगो की हैं जो उम्र में काफी भिन्नता रखते हैं।
पर प्यार उम्र या कोई सीमाएँ देखकर कब हुआ हैं भला।
कैसे किसी को हर दिन बुरा लगता हैं,कैसे किसीका हर पल सालो जैसा लगता हैं
पर किसी एक के आ जाने के बाद चारो और ख़ुशी का माहौल बन जाता हो.....
यह वही कहानी हैं जहाँ एक समय जिंदगी एक बोझ लगने लगी थी अब वही जिंदगी उसे एक तोहफा लगने लगी थी.....।


5-घर हम्ज़ा और जीनत(अकबर क़ादरी):-जब कोई खुद की परेशानी भूलकर दुसरो की परेशानी सुलझाने की सलाह देने लगे और बताएं कि जिंदगी ऐसे जीना चाहिए,बस यही से होती हैं असली पवित्र प्रेम की शुरुआत।
जीनत के अम्मी और अब्बू का तलाक का केस चल रहा होता हैं पर भी वह कैसे खुश मिजाजी से रहती हैं।
बस यही कहानी का सार हैं।

6-सैनोरिटा(दुर्गेश सिंह):-इस कहानी में स्वार्थ को दिखाया गया हैं कि कैसे स्वार्थ के चक्कर में कैसे किसी को वक्त पर काम नहीं आया।
इस कहानी में कॉलेज के प्रेम के बारे में ,रैगिंग के बारे में हैं;कैसे कहानी के मुख्य किरदार को रैगिंग में परफ्यूम लगाने को कहा गया था और वह 'सैनोरिटा' परफ्यूम ले आया था.....।

7:-ट्रेन का हमसफर(कंचन पन्त):-यह कहानी एक ट्रेन की यात्रा हैं जिसमे ऐसा इश्क हैं जिसकी कसक जिसकी जादूगरी या जिसकी बारीकियाँ गिनाना थोडा सा मुश्किल हैं।
ट्रेन में उस प्रेम की की शुरुआत जिसमे लडकी कीडायरी पढने से लेकर के अपने हर एक सफर का बेहतरीन तरीके से बताया गया हैं।


8:-फिर नया साल और पुराना मैं(नीलेश मिसरा):-यह कहानी वास्तव में किसी की आदत के बारे में ज्यादा कहती हैं कि कैसे कोई व्यक्ति अपनी आदतों के कारण रिश्ता बिगाड़ लेता हैं। कैसे उन आदतों के कारण प्रेम कम होता चला जाता हैं।
पर इस कहानी में प्रेम आदतों पर भारी पड जाता हैं और अपनी प्रेमिका को उसकी पसंदीदा तरीके से मिलता हैं.......


9:-इश्क़ की ज़ियारत(अकबर क़ादरी):-इस कहानी में इश्क हैं उस खुदा से और उसकी बनाई उस हर बन्दगी से।
कुछ जादुई पंक्तियाँ आपको इश्क से मिलवा भी देती हैं जैसे
       'रूहानित से आप क्या समझते हैं?
जवाब:-'जब दिल को बेहद सुकून महसूस हो और उस लम्हें में कोई और ख्वाहिश न रहें। मन के अंदर तक खामोशी रौनक बनकर धडकने लगे। ऐसा लगे कि कुदरत से पाक कुछ भी नहीं।'

10:-वो आठ शब्द(नीलेश मिसरा):-
सपने और प्रेम का कितना अनोखा घोल हैं इस 
कहानी में ।
सपनो की अपनी कोई सीमाएं नही  होती हैं।
इस कहानी में भी प्रेम का बेहद खुबसूरत सफर हैं।
कामर्स में चाहे नंबर कम आए हो;पर आँखें खूब पढ़ लेती थी रागिनी।'
'शब्दों से तस्वीरें कितनी अच्छी खींचती थी रागिनी।'

11-तुषार और नैना(आयुष तिवारी):-
ऐसा प्रेम जो वक्त रहते साथ नहीं हो पाया पर वक्त के साथ दोनों मिलते हैं अंग्रेजी में कहते हैं न एज़ ए फ्रेंड।
रिश्तों की बुनियाद इस कहानी को सही मायने देती हैं।
इस कहानी की लाइन्स भी दिल छू जाती हैं जैसे:-
  'रिश्ते:-ये तो ज़िन्दगी के बगीचे का फूल हैं,जिसे रोज लम्हों से सींचना पड़ता हैं।जिसे रोज मुस्कराहट की,प्यार की,अपनेपन की खाद डालनी होती हैं वरना पता कहाँ लगता हैं कि कब ये फूल मुरझा गए।'
  
'बड़े शहर में रहकर पेट के अलावा भावनाओं पर भी चर्बी चढ़ जाती हैं।'

12-दोपहर का इंतज़ार(आजम क़ादरी):-यह 
कहानी बंटवारे के वक्त की हैं,कैसे बंटवारे ने प्रेम को भी बाँटना चाहा।कैसे बंटवारा काँटे की तरह चुभता हैं।
यह कहानी उस प्रेम की हैं जिसे सरहद कभी नहीं रोक पाई।
इस कहानी में ऐसी अनेक पंक्तियाँ हैं जहाँ आप कहेंगे वाह....
जैसे
  बँटवारा मुल्को का हुआ था लेकिन सरहदें अपनों में पड़ गई ही। तार बॉर्डर पर तने थे पर डोरे रिश्तों की टूटी थी।'

'घुटनों में थोडा सा बुढापा उतर आया था उनके'।

13:-काठ की कोठी :-यह कहानी शहर से गाँव आने की हैं,उसकी भी अपनी वजह हैं
कैसे कोठी बेचने आए हुए उस किरदार को अपनी गलती का एहसास होता हैं
कैसे उसमें प्रेम के अंकुरण जन्म लेते हैं
कैसे प्यार हर बड़ी से बड़ी गलती को माफ़ कर देता हैं।

14:-बेनाम स्टेशन(आजम क़ादरी)इस कहानी को पढ़ते हुए ऐसा लगता हैं जैसे प्यार भी एक यात्रा का नाम,प्यार उस बेनाम स्टेशन की तरह हैं जिसका कोई पता या गंतव्य नहीं जानता हो।
यह कहानी हमें कितनी ही यात्राओ से गुजारती हैं जिसमे एहसास होता हैं उस अनोखेपन का उस प्यार का.....
जी हाँ बस इतनी सी थी ये कहानी.....।

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ऐसे और भी कई शब्द हैं वाक्य हैं जिसकी जादूगरी अनोखी हैं।

बात करें किताब की कमी की तो मुझे तो कुछ कमी नज़र आई नहीं,हाँ कभी कभी किसी कहानी में अधूरेपन का एहसास होता हैं।
कमी की जगह मेरे पास खासियत ही हैं-दादी नानी की कमी तो कोई पूरी नहीं कर सकता पर कुछ हद तक इस किताब की कहानियाँ उस लैप की तरह काम करती हैं जो कि एक मल्हम करता हैं।
कहानियाँ पढिए।
अच्छा लगेगा।
आपका Santosh (santy)
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शनिवार, 28 मई 2016

गम में डूबकर जीना,क्या वाकई में जीना हैं ?

राघव का रिज़ल्ट आये अभी 2 ही दिन हुए थे,लेकिन राघव का हाल तो इतना बुरा हो चुका था कि न खुद ठीक से जी पा रहा था और न ही उसके घरवाले;क्युंकि राघव का रिज़ल्ट किसी की भी उम्मीद के मुताबिक नही था,ऐसा ही तो होता हैं जब उम्मिदे धूमिल होती हैं;सपनो के जो पंख लगे थे जो मानो किसी ने कतर दिए हो और जैसे बिना पंख के आसमान से गिर रहा हो।
वो और उसके साथ साथ उसका पुरा परिवार भी उसके दुख मे दुखी हो चले। राघव को देखकर कोई भी आसानी से कह सकता था कि क्या इस लडके क जीने से मन भर गया है,जो इतना उदास रहता हैं।राघव को अपनी तकलिफ कम करने का कोई उपाय नज़र नहीं आया।
                   1 साल पहले की ही बात है जब राघव क रिज़ल्ट नहीं आया था।
मेरा दोस्त राघव और मै जब भी मिलते हमेशा की तरह गप्पे लडाते  रहते थे;राघव हमेशा सज धजकर ही रहता,काले घुंघराले बाल,ऊंचा कद,पेंट मे बेल्ट और आंखो पर काला चश्मा । राघव के चेहरे की मुस्कान देखकर अच्छे अच्छे दुखी आत्मा अपना गम भुला बेठते । पर आज हालात कुछ और ही थे;जो लोग राघव को देखकर मुस्कुरा उठते थे वही सब लोग आज राघव को देखकर दुखी हो उठते ।अब राघव के चेहरे की मुस्कान कही खो गयी थी।राघव कभी खुद को सजने संवारने मे वक्त लेता था आज वो वक्त उसने अपनी उदासी को दे दिया है;बाल बेतरतीब बिखरे और उलझे हुए है,जो आंखे कभी काले चश्मे से ढंकी रहती थी आज उन आंखो मे आंसुओ के सिवाय कुछ और नज़र नही आता और उंचा कद तो था पर वो आज किसी बुढे से कम नज़र नहीं आ रहा था।   
फिर कही उसने सुना कि अगर टूट कर बिखरना ही हैं तो क्यु ना कुछ ऐसे बिखरे कि सामने वाला भी अपने ही रंग मे रंगा नज़र आए जैसे रंग बिखरते है,जैसे हवा बहती है,जैसे खुशबू बिखरती है और बिखकर दुसरो को खुशिया दे जाती हैआखिर राघव के दुखो के पंख झड गये और खुशियो के नये पंख लग गये।
उसने गम को पिछे छोड फिर से कोशिश की और इस बार उसका रिज़ल्ट वाकई चौकाने वाला था;वो प्रथम श्रेणी से पास था।
क्या टूटकर बिखरना;हमारी मुश्किलो को आसान बना देता हैं या फिर हमारी तकलिफो को और बढा देता हैं ? ज़रा पल भर के लिये ही सोंच कर देखा जाये कि आखिर हमे हमारी तकलिफो में टूटकर बिखरना कितना सही हैं।
जब जब हमपे मुसीबते आती है, तो वो साथ में अनेक अवसर भी लेकर आती हैं, और हाँ दुखो से घबराकर टूटने से हम अपने साथ साथ अपने परिवार को भी न चाहते हुए अपने दुख मे शामिल कर लेते हैं।
याद हैं जब एक पेंसिल कि नोक जब टूटती हैं तो कैसे बिखर जाती हैं,बिल्कुल ऐसे ही हमारे गम,दुख,तकलिफ हैं;जिसमे जितना हम टूट कर बिखरते हैं उतना ही हमारे साथ हमारे अपने भी टूट जाते हैं।
तो जब भी टूटो तो ऐसे कि खुशियो के रंग हर तरफ फैले न कि गम के।
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मंगलवार, 12 अप्रैल 2016

ज़िन्दगी का नजरिया।

हताशा,निराशा,प्रशंसा और गहन आस्था ये सब कुछ हमारे नज़रिए से तय होता हैं।
             जहाँ हमारे लिए रात एक गहरा अन्धकार लिए होती हैं;वहीं उल्लु के लिए तो वो सवेरा होता हैं।
मतलब साफ़ हैं कि परिस्थिति के अनुरूप ही नजरिया बन जाता हैं,और प्रत्येक व्यक्ति की अलग अलग परिस्थितियाँ होती हैं। यही परिस्थितियां समय,स्थान और वहां की अपनी भौगोलीक स्थिती पर निर्भर करता है।
इसिलए कोई भी राय बनाने से पूर्व हमें ये तय कर लेना चाहिए कि आखिर सामने वाले ने किस कारणवश ये निर्णय लिया हैं;फिर हमें उस विषय में सोचना चाहिए।
           "नज़रिया" ही हैं जो बने बनाये रिश्तों को पल भर में खण्ड खण्ड कर सकता हैं और नज़रिया ही हैं जिससे वर्षो पुराने टूटे रिश्तो को नई शुरुआत दी जा सकती हैं।
बस नजरिया सकारात्मक होना जरूरी हैं ।
अगर हम अपने नज़रिए को सकारात्मक दृष्टिकोण देने में कामयाब रहें तो दुनिया आपके कदम चुमने को तैयार रहेगी वर्ना दुनिया आपसे मुँह मोडने में वक्त नहीं लगाएगी।
     सोचना आपको हैं कि आपको दुनिया के साथ आगे बढना हैं या फिर उसी दुनिया की भीड़ में खो जाना हैं।
तय आपको करना हैं।
वक्त और नजरिया आपको सकारात्मकता दें।

रविवार, 21 फ़रवरी 2016

हम और सवाल

मैं और हम सब में से अधिकतर अपनी तैयारी या अपनी खुशियाँ जुटाने के लिए आने वाले कल का इंतज़ार करते हैं,पर तब क्या हो जब आपको कहीं से ये पता चल जाएँ कि कल का सूरज आप नहीं देख पाएँगे??
शायद कुछ लोग इस डर की वजह से चंद पल में ही जिंदगी गँवा बैठेंगे,कुछ लोग अपनी पूरानी गलतियों को ठीक करने में वक्त लगाएँगे,और कुछ बुद्धिजीवी वर्ग अपना हर काम में शत प्रतिशत देने का प्रयत्न करेंगे।
        अगर हर कोई अपने हर एक काम में अपना शत प्रतिशत देने लगे,तो शायद हम पछतावे जैसे शब्द को अतीत बना चुके होंगे,और सफलता को अपना वर्तमान।
क्यूंकि शत प्रतिशत मेहनत के आगे सफलता निश्चित होती हैं और सफलता जहाँ होंगी वहाँ पछतावा नहीं हो सकता,हाँ सफलता कुछ आगे या पीछे जरुर हो सकती हैं।
        यह प्रश्न अपने आप में अनोखा होगा कि आप अपने जीवन में क्या करना चाहेंगे जब आपके जीवन में चंद दिन ही शेष रहे?
          शायद ऐसा सोचना थोडा मुश्किल लगे पर अगर हम अपनी सोच में भी अगर मुशिकल लाना मुनासिब न समझेंगे तो असलियत में शायद में हम ऐसी मुश्किलों से दूर भागेंगे जो कोई अच्छी आदत नहीं हैं।
जब यहीं सवाल एक सभा में पूछा गया तो जवाब वाकई मैं दिल छू लेने वाले थे।
कुछ जवाब-1मैं अपने अंगदान करना चाहूँगा जिससे कि मैं अपनी ज़िन्दगी दुसरे के जरिये जी सकूँ।
   ऐसे ही अजनबी से लगते सवाल खुदसे पूछिये और खुद ही उन सवालों के जवाब ढूंढने की कोशिश कीजिये हो सकता हैं कि उन अजनबी से लगने वाले सवालों में ही आपका भविष्य छिपा हुआ हो।
         Stay tune :-)
Be cool ;-)

शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2016

ज़िन्दगी को खोने का डर

वास्तव में हम जिंदगी तभी खो देते हैं जब हमारे दिमाग में ये डर लगा रहता हैं कि मेरे जीवन का क्या होगा
निराशा डर के पनपने का एक कारण हैं।
        डर एक ऐसी बीमारी हैं जो किसी को भी अपाहिज बना सकता हैं,चलते फिरते आदमी को घुटनों के बल पटक देता हैं,कुछ एक शब्द में पूरी बात को समेटू तो यह की डर वह हैं जो जीते हुए व्यक्ति को भी मुर्दे के जैसा बनाने से नहीं चुकता।
डर व्यक्ति को पल पल मारता हैं।
डर को बवक्त की मौत कहना गलत नही होगा।
क्यूँकी वास्तव में डरकर जीना कोई जीना ही नहीं हैं।
अब आप सोचेंगे कि ये भाषण क्यों झाड रहा हैं,तो अब असली मुद्दे पर आते हैं।
डर केवल भूत प्रेतों से ही नहीं होता हैं जनाब।
डर के भी अपने अलग अलग रंग हैं,रूप हैं।
कैसे?
       जब आप कभी गलती से कोई गलती कर बैठते हैं,तो डांट का डर
परीक्षा में कम अंक या फ़ैल होने का डर
नौकरी छूट जाने का डर
रिश्तें टूट जाने का डर
और कितने ही ऐसे गम हैं जिसमें हम सारी जिंदगी खफा देते हैं और इससे हमे मिलता क्या हैं-एक घुटन भरी और बदहवास जिंदगी। एक मिनट,शायद इसे जिंदगी कहना गलत होगा।
गम में डर में जीना कोई ज़िन्दगी नही हैं।
             उपाय ऐसा कि घुटन भरी जिंदगी के पंख कतर दिए जाएंगे फिर भी आप ख़ुशी के आसमान में सैर करेंगे।
कैसे?
      पता करते हैं की डर आखिर पैदा कैसे होता हैं;डर पैदा होता हैं उम्मीदों की तिजोरी के टूटने के आभाष होने पर या उम्मीदों की उस तिजोरी क लुटे जाने पर।
                 साफ़ शब्दों में कहूँ तो जिंदगी को किसी सीमा रेखा में मत बांधो यार,पर कुछ दायरा होना भी चाहिए जिससे कि हमारे खयाली घोड़े हमे कुछ गलत दिशा में छलांग न लगवा बैठे।सीमा या दायरा यदि रखना हैं तो केवल मर्यादा और अनुशाशन की रखो।
मर्यादा,मान और अनुशाशन ये तीनो डर के सबसे बड़े दुश्मन हैं।
ऐसा करने से आपको डर से आज़ादी और खुदसे मोहब्बत हो जाएगी,खुद और सबसे मोहब्बत से रहना ही तो जिंदगी हसीन दोस्तों;
तो जीत गए न आप डर से और मिल लिए न असली जिंदगी से।
           Stay tune.. :-)

मंगलवार, 9 फ़रवरी 2016

जब लगे कि अब कुछ करना है....

कई बार मन में ऐसे ख्याल आते रहते हैं कि अब कुछ अलग करना हैं या अब कुछ करके दिखाना हैं,पर ऐसे होसलें धरे के धरे रह जाते हैं जब हम खुद से ही झूठ बोलने लगते हैं।
      खुद से झूठ बोलना बहुत महंगा साबित होता हैं
जब आपको लगे कि कुछ करके दिखाना हैं तो दुनिया के आईने में खुद को देखना बंद कीजिये और अपने ही मन के दर्पण में झांककर देखिये,जो आप बाहर ढूंढ रहे हो वो अंदर ही हो,बस एक बार लगन से ढूंढने भर की देर हैं।
दुसरो से जीतना एक बार का आसान काम हैं,खुद से जीतना बहुत मुश्किल होता हैं।
               अकेले में दो पल गुजारिए,खुदसे एक बात पूछिये कि क्या वाकई में मैं अपनी ज़िन्दगी जी रहा हूँ या सिर्फ दिन काट रहा हूँ,जिस वक्त आपको ये जवाब मिल जाये तब आप या तो आगे नई राह देखेंगे या फिर वही बैठे बैठे दिन काट देंगे।
     आगे बढने का एक ही रास्ता हैं सतत चलना,खुद के प्रति इमानदारी।
किसी ने क्या खूब कहा हैं - रूका हुआ तो पानी भी सड जाता हैं;तो दोस्तों रुकिए मत,कुछ भी करिये पर कुछ करिये जरुर;अपने लिए और अपने सपनो के लिए।
            Santosh Yadav

आओ किसी के लिए सांता बने

(कविता) माटी के उस ढेर से ,आओ चीज नवीनता से सने । बाँटकर खुशियाँ दुखियारों में,आओ किसी के लिए सांता बने।। जीवन की राह कठिन हैं,साहस व धैर...